Mr. Sidhu: very educational for me. I shared it some of Pakistani friends from my Alma mater . Here are some comments :
Sir. yes very thoughtful of you!
( Saleem Beg Karachi)
Thank you for your thoughtfulness
( Sami - Washington DC)
Thanks Sir!
A good insightful article, reminding people about the truth in teachings of prophet (PBUH)—a progressive nature of religion Islam with regards to “women rights” and “respect” for other believes!! In today’s era of divides, ignorance & arrogance (Talibans- mostly cultural), the article is great to point out:
“He drafted the Constitution of Medina, a remarkable document that guaranteed religious freedom for all citizens, including Jews and pagans, and created a sense of community or 'Ummah' among the disparate tribes.“
Here's a post from Jan Vichar Samvaad on Facebook, containing a naat by Darshan Singh Duggal (1921-1989), celebrating Id-i-Milad and India's diversity at the same time:
कल बारावफात है । पैगम्बर हज़रत मोहम्मद साहब से जुड़ा हुआ दिन,आज हर तरफ रौशनी है । शाम जगमगा रही हैं, अपने रसूल,अपने नबी को याद करने के लिए । हमारा लखनऊ लोबान की खुशबू में महक रहा है, अमीनाबाद से मौलवीगंज, रक़ाबगंज, यहियागंज,नदानमहल,नक्खास,टूड़ीयागंज,खालाबाज़ार,हैदरगंज,ऐशबाग तक एक चमक बिखरी पड़ी है,बयान चल रहे हैं, नातें हवा में गूंज रही हैं, इस्लामिया कॉलेज का मैदान चहक उठा है।
यह तो हमारे लखनऊ का हाल है, बल्कि सारी दुनिया आजकी रात उस नबी को याद कर रही है, जिसने मानवता और बराबरी के लिए एक मिसाली ज़िन्दगी जीकर दिखाया और जो बहुत कम वक़्त में सारी दुनिया में अपनाया गया । आज उन्ही नबी की शान में आपके सामने शायर दर्शन सिंह दुग्गल साहब की कलम रख रहे हैं, देखिये हमारी माटी ऐसी ही थी,हमारा दर्शन यही था कि जब दर्शन सिंह का दिल झूमकर पैग़म्बर हज़रत मोहम्मद की आमद पर कलम तोड़ दे,कोई रसखान कृष्ण के लिए झूम उठे,यही तो है जो हमें बचाना है । हमारी संस्कृति, जिसमें सबका सम्मान और सबकी बराबरी शामिल है ।
दर्शन सिंह जी को पढ़िए और एक दूसरे को ईद ए मीलादुन्नबी की मुबारकबाद दीजिये ।
Mr. Sidhu: very educational for me. I shared it some of Pakistani friends from my Alma mater . Here are some comments :
Sir. yes very thoughtful of you!
( Saleem Beg Karachi)
Thank you for your thoughtfulness
( Sami - Washington DC)
Thanks Sir!
A good insightful article, reminding people about the truth in teachings of prophet (PBUH)—a progressive nature of religion Islam with regards to “women rights” and “respect” for other believes!! In today’s era of divides, ignorance & arrogance (Talibans- mostly cultural), the article is great to point out:
“He drafted the Constitution of Medina, a remarkable document that guaranteed religious freedom for all citizens, including Jews and pagans, and created a sense of community or 'Ummah' among the disparate tribes.“
( Khawar Hasan- Islamabad )
May like to forward them the following article as well, if you deem fit.
https://open.substack.com/pub/kbssidhu/p/beyond-divisions-chronicling-sikh?r=59hi9&utm_campaign=post&utm_medium=web
Exactly. Nothing blinds us like our preconceived notions and our prejudices.
Beautiful.
Here's a post from Jan Vichar Samvaad on Facebook, containing a naat by Darshan Singh Duggal (1921-1989), celebrating Id-i-Milad and India's diversity at the same time:
कल बारावफात है । पैगम्बर हज़रत मोहम्मद साहब से जुड़ा हुआ दिन,आज हर तरफ रौशनी है । शाम जगमगा रही हैं, अपने रसूल,अपने नबी को याद करने के लिए । हमारा लखनऊ लोबान की खुशबू में महक रहा है, अमीनाबाद से मौलवीगंज, रक़ाबगंज, यहियागंज,नदानमहल,नक्खास,टूड़ीयागंज,खालाबाज़ार,हैदरगंज,ऐशबाग तक एक चमक बिखरी पड़ी है,बयान चल रहे हैं, नातें हवा में गूंज रही हैं, इस्लामिया कॉलेज का मैदान चहक उठा है।
यह तो हमारे लखनऊ का हाल है, बल्कि सारी दुनिया आजकी रात उस नबी को याद कर रही है, जिसने मानवता और बराबरी के लिए एक मिसाली ज़िन्दगी जीकर दिखाया और जो बहुत कम वक़्त में सारी दुनिया में अपनाया गया । आज उन्ही नबी की शान में आपके सामने शायर दर्शन सिंह दुग्गल साहब की कलम रख रहे हैं, देखिये हमारी माटी ऐसी ही थी,हमारा दर्शन यही था कि जब दर्शन सिंह का दिल झूमकर पैग़म्बर हज़रत मोहम्मद की आमद पर कलम तोड़ दे,कोई रसखान कृष्ण के लिए झूम उठे,यही तो है जो हमें बचाना है । हमारी संस्कृति, जिसमें सबका सम्मान और सबकी बराबरी शामिल है ।
दर्शन सिंह जी को पढ़िए और एक दूसरे को ईद ए मीलादुन्नबी की मुबारकबाद दीजिये ।
रुहे इंसा को हक़ीक़त से मिलाने वाले,
मरहबा! नग़्म ए तौहीद सुनने वाले ।
दौर पर दौर चले बाग़ ए इखलास का फिर,
मुन्तज़िर बैठे हैं सब पीने पिलाने वाले ।
कर दे बेदार ज़रा फिर से ज़मीरे इंसा,
ख़्वाबे ग़फ़लत से ज़माने को जगाने वाले।
अहले दिल भूल नही सकता इंसा तेरा,
ग़म की मारी दुनिया को हंसाने वाले ।
क्यों न दम तेरा भरे अहले-विला अहले वफ़ा,
नक़्श उल्फ़त का हर एक दिल में बिठाने वाले ।
किश्तिये ज़ीस्त है तूफाँ में बचा ले इसको,
डूबती नाव को साहिल पर लगाने वाले ।
खाके-पा को तिरी अय नूरे ख़ुदा के हामिल,
सुरमए चश्म बनाते हैं बनाने वाले ।
हम फ़क़ीरों पे भी हो जाए तिरा लुत्फ़ ओ करम,
बार हँस हँस के गरीबों का उठाने वाले ।
लौ लगाए हुए बैठे हैं गुज़रगाहों में,
नक़्शे-पा को तिरे आंखों से लगाने वाले ।
बन्दगी तेरी करूँ,मुझको यह तौफ़ीक़ तो बख़्श,
वाद-ए-रोज़े-अज़ल याद दिलाने वाले ।
बख़्ते "दर्शन" पे भी इक बार नज़र हो जाए,
बिगड़ी तक़दीर ज़माने की बताने वाले । ।
#hashtag #हैशटैग
Very informative.
Enjoyed it . Shared with my friends.
Thank you !